राजधानी देहरादून :- कम विद्यार्थी वाले स्कूलों को सरकार ने बंद करने का फैसला सुना दिया है।
शिक्षा के सुधार के लिए यह एक अच्छा कदम हो सकता है , साथ ही साथ अनावश्यक सरकारी खर्चे पर अंकुश भी कुछ हद तक लग सकता है परन्तु इसी बीच एक और खबर निकल कर सामने आई है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सरकार शिक्षा तंत्र को कहीं न कहीं भगवा रूप देने की तैयारी कर रही है। ताकि चहेतो का भला हो सके।
संघ द्वारा संचालित शिशु मंदिरों को वित्तपोषित करने की तयारी शाशन द्वारा अगस्त माह से ही शुरू हो चुकी है।सरकार ने अपना यह छिपा हुवा एजेंडा बिलकुल भी जनता के सामने नहीं रखा या तो अफसरों पर कोई दवाब है या सरकार की मंशा साफ़ नहीं है।
जिस एजेंडे पर सरकार अगस्त माह से शुरुआत कर रही है, उस एजेंडे की भनक भी कानोकान लागों तक नहीं लगने दी गयी।
जानकरी के मुताबिक शाशन स्तर से 25 अगस्त 2017 को विद्यालय शिक्षा निदेशक द्वारा राज्य के सभी जिला शिक्षा अधिकारीयों से अपने अपने जनपद में चल रहे सभी शिशु मन्दिर और विद्यामंदिर की संख्या तथा छात्र संख्या और उनसे 1km तथा 3 km की परिधि में कितने और कौन कौन से विद्यालय की जानकारी मांगी गयी हैं।
जाहिर है यही पैमाना सरकार ने छात्र संख्या की आड़ लेकर सरकारी विद्यालयो को बंद करने का रखा है। इस कार्य अमलीजामा पहनाने के लिए युद्ध स्तर पर कोसिस चल रही है। सभी शिक्षा अधिकारियो से अपने अधीनस्ट अधिकारियों से जल्द से जल्द जानकरी देने को कहा गया है ,इसके लिए माइक्रोसॉफ्ट का एक्सेल प्रोग्राम में कुर्ती देव 10 फॉन्ट तैयार करके ईमेल करने तथा वाहक के माध्य्म से जानकारी उपलब्ध कराने को कहा गया है।
उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर यह साफ़ झलकता है की शिक्षा विभाग पर भरी दवाब है।
राजनीति के लिए बीजेपी और आर एस एस द्वारा शिशु मंदिरो को अपना मुख्य जमीनी नेटवर्क वनाए रखने के लिए किया करते है।
पिछले तमाम रिकॉर्डों के आधार पर बीजेपी के लघभग सांसद ,विधायक अपनी निधि का एक बड़ा हिस्सा इन स्कूलों के लिए देते आये है। प्रमांकिता के तौर पर घनसाली विधानसभा के निवर्तमान विद्यालय भीम लाल आर्य द्वारा भी लगभग 98 लाख रूपये इन विद्यालयों को दिए गए थे, वे तत्कालीन बीजेपी के विधायक थे। जिन्होंने बाद में बीजेपी से त्याग पत्र दे दिया था।
एक और सरकार जहां सरकारी स्कूल को बंद कर रही है वही दूसरी और अगर शिशु मंदिर और विद्यामंदिर को वित्तपोषित करने की कोसिस कर रही है तो वह निश्चित तौर पर एक और जहाँ सरकारी शिक्षक बनने के लिए वर्षो से डिग्री हासिल करके आश लगाये लोगों के लिए एक झटका है वही दूसरी तरफ दूसरी तरफ राजनीति के गलियारों को सरकारी पैसा से भगवा करने की पूरी तैयारी है।
यह कदम कितना कारगार होगा यह तो वक़्त ही बताएगा परन्तु अगर सरकार वित्तपोषित करके इस तन्त्र में बदलाव लाना चाहती है तो आज बही बहुत सारे ऐडेड स्कूल है जिनकी स्थिति लचर पचर है और कई ऐसे इलाके है जहाँ बचे आज भी कई km दूर पढ़ने जाते है।
वेसे सरकार द्वारा आनन् फानन में सभी प्राइवेट टीचरों को डी एल एड करने का भी हुकम सुनाया गया है।
जिसके लिए एन आई ओ एस संस्था को चुना गया है।
कहीं ऐसा तो नहीं की एक तरफ सभी प्राइवेट स्कूलों और लोगों का ध्यान इस तरफ लगा कर सरकार कुछ बहुत बड़ा भुनाने की तैयारी में लगी है।
बेरोजगार लोगों का और विपक्षी पार्टियों के इस तरफ क्या रूख होगा वह वक़्त ही बताएगा।
आभारी :-(पर्वतजन)