छात्र राजनीति की आड़ में नेता गिरी चमकाने की कोसिस। अहम् बिंदुओं को हाथ भी नहीं लगाया। नगर पंचायत चुनाव है निशाने पर।
3 दिन तक बालगंगा महाविद्यालय सेंदुल के मुख्य प्रवेश द्वार पर छात्र संघटन से जुड़े नेताओं का जमघट लगा रहा, जो आखिरी दिन भूख हड़ताल नुमा एक सूक्ष्म कार्यक्रम के साथ समाप्त हो गया , देखने वाली बात सिर्फ ये थी की कार्यक्रम ऐसा लग रहा था जैसे ये एक सुनियोजित कार्यक्रम है जिसमे थोडा ड्रामा करके और फिर वही आश्वाशन के दौर के बाद खत्म हो जाना था।
जैसा की आजतक होता आया है कोरे आश्वाशन के बाद जनप्रतिनिधियों और शाशन प्रशाशन की लंबी निद्रा में चले जाना।
इस कार्यक्रम को देख कर कही ये बात हजम नहीं हो रही है की जिन मुद्दों पर बात पूर्ववर्ती सरकार के पास पहले से है और उनमे कई आश्वाशन भी मिल चुके है तो फिर इस बार नया किया हुवा।
क्या छात्र संघटन इतना कमजोर हो चूका है की वह केवल आश्वाशन तक ही सीमित होकर कोरी राजनीति केवल कुछ लोगों को चमकाने के लिए कर रहा है ।
अगर ऐसा नहीं तो आश्वाशन तो पहले कई मिले पर अंजाम तक कितने पहुंचे यह तो महाविद्यालय की आज की स्थिति बता रही है।
छात्र संघटन हर बार ये क्यूं भूल जाता है की जिस कॉलेज में पढ़ाने वाले शिक्षको को डेढ़ दो साल से तनख्वाह नहीं मिल रही उनके परिवार किस तरह चल रहे होंगे। उनका परिवार अगर बुरी स्थिति में रहेगा तो क्या महाविद्यालय में शैक्षिणक कार्य सही ढंग से हो पाएंगे।
क्या छात्र संघटन केवल कोर्सेज बढ़ाना चाहता है क्या पढ़ाने वाले लोगों का केवल शोषण होगा।
बालगंगा महाविद्यालय में कई तरह की समस्याएं है ।
महाविद्यालय में नयी कक्षाओं को चलाने के लिए समुचित कमरे नहीं है।
एक बुजुर्ग प्रबंधक बी के नौटियाल है जो कॉलेज के लिए अकेला भाग दौड़ करते है बाकी सभी अपनी राजनीति की रोटी सेंकने कॉलेज में पहुँच जाते हैं।
नगर पंचायत का चुनाव सामने खड़ा है कुछ न कुछ तो राजनीति चमकाने वालों को करना ही है , जिसके लिए वह अब छात्र राजनीति का सहारा ले रहे है। कई उनमे से तमाम तरह की ठेकेदारीप्रथा में व्यस्त है , अपनी नहीं तो नातेेरिश्तेदारों के नाम पर वह इसलिए ताकि अपने आप को पाक साफ़ रखा जाए।
नगर पंचायतो के चुनाव में निश्चित तौर पर छात्र संघटन से जुड़े लोगों का पूरा प्रयोग किया जाएगा। इसलिए इनको आगे करके राजनीति करने वाले लोग इनका इस्तेमाल कर रहे है अगर ऐसा नहीं होता तो महाविद्यालय की तमाम मुख्य समस्याएं इस समय की छात्र संघटन के मांगो में होती। पर वह सब इसलिए नहीं क्योंकि सरकार का भी ख्याल रखा जाना था। बाते उतनी ही उठाई गयी जितना आकाओं ने उचित समझा होगा। ये डबल ट्रिपल वाला फार्मूला अगर छात्र राजनीति में भी हावी होगा तो कैसा भविष्य सुधरेगा इस बालगंगा घाटी का। जहाँ का छात्र नेता केवल कोरे आश्वाशन के लिए आशन जमा लेता है और फिर जन प्रितिनिधियों के आश्वाशन पर अपना आशन चुप- चाप उठा लेता है। जब ऐसे ही चलना है तो यह तो कई सालों से होता आ रहा है।
जवाब सामने है , निशान है नगर पंचायत चुनाव शुरूआती ठिकाना बना है बालगंगा महाविद्यालय की छात्र राजनीति। 2018 के शुरुआती चरण में नगर पंचायत घनसाली और नव निर्मित नगर पंचायत चमियाला के चुनाव होने हैं , कहीं वह फीका न रह जाए राजनीति के लिए इसलिए छात्र संघटन का सहारा लिया गया।
शिक्षक के घर का चूल्हा कैसे जल रहा होगा कोई नहीं सोचता , अगर कोई सोचता है तो वह है कैसे भी करके अपनी ठेकेदारी जमाई जाए , राजनीति चमकाई जाए।
मुद्दा भले ही पुराना था पर निपटाने का ढंग कौन सा नया था। चाल नयी थी पर निपटाने का पैंतरा पुराना हो गया साहेब। इस बार कुछ तो नाय कर देते।
कब होगा महाविद्यालय का विकाश , कही यह कोरे आश्वशनो तक ही सीमित न रह जाए।
शिक्षा व्यवस्था का ढुल मूल रवैया पलायन पर पड़ रहा भारी , जब यहाँ का युवा ही नहीं समझेगा तो कौन लेगा जिम्मेदारी।