टिहरी एवं रुद्रप्रयाग जिले में कुदरत का कहर।
जहाँ टिहरी में 2 की मौत से सिहरे लोग वही रुद्रप्रयाग में हुई आपदा से 2013 की घटना लोगों के सामने उबर कर आने से सहमे ग्रामीण।
1- देर रात घनसाली के थार्ती गांव के ऊपर कहर बनकर टूटी, देर रात बारिश से ग्राम पंचायत थार्ती नैलचामी भिलंगना में एक परिवार के 2 सदस्य मलबे में दब गए हैं साथ ही पूरे नैलचामी क्षेत्र में काफी नुकसान हुआ ।
देर रात करीब 1ः 40 पर टिहरी के घनसाली में ठेला थार्ती गांव के ऊपर जंगल में बादल फट गया जिससे परिगाढ़ समेत सभी गदेरे में काफी पानी बढ़ गया, जिसके एक मकान सैलाब की चपेट में आ गया, सैलाब के मलबे में एक महिला और एक बच्चे की मौत हो गयी एवं एक अन्य लड़की घायल हो गयी।
महिला का पति पूणे में नौकरी करता है, वही ठेला गांव में भी काफी नुकसान की खबर है, वही कई स्थानों पर सडके क्षतिग्रस्त होने से रैस्क्यू टीम मौके को मौके पर पहुचने में काफी देर हो गयी।
घनसाली विधायक शक्ति लाल शाह ने थार्ती गाँव में पहुँच कर घटना स्थल का जायजा लिया वही माननीय विधायक शाक्ति शाह ने परिवारों के प्रति संवेदनशील व्यक्त कि व अपने स्तर से आपदा परिवारों की हर सम्भव मदद करने का आश्वाशन दिया । घायल सपना की शीघ्र स्वस्थ होने की कामनाएं की।
वही आपदा प्रबंधन और प्रशाशन के लोगों के देर से घटना स्थल पर पहुचने की खबर मिली।
2- प्रकृति का रौद्र रूप और बेबस लाचार इन्सान
-कुलदीप राणा आजाद/रूद्रप्रयाग
रुद्रप्रयाग के चाका गांव में बादल फटने से भारी तबाही :-
आधुनिकता की अंधी दौड़ में भले ही मानव सभ्यताएं विकास के कितने ही कीर्तिमान स्थापित क्यों न कर ले, लेकिन प्रकृति जब अपना रौद्र रूप दिखाती है तो इंसानी ताकत बेबस और लाचार नजर आती हैै। आपदा की दृष्टि से जोन-5 में चिन्हित रूद्रप्रयाग जिले में हर साल अलग-अलग क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदायें अपना कहर बरपाती है जिस कारण बड़े पैमाने पर जान माल का नुकसान होता हैं। वृस्पतिवार की रात को चाका गााँव में प्रकृति ने ऐसा कोहराम मचाया कि ग्रामीण सहमें नहीं सम्भल पा रहे हैं।
पहाड़ों में प्राकृतिक आपदाओं का हमेशा से बोलबाला रहा है।
खासतौर पर अगर केदारघाटी की बात करें तो यहां 2013 की भीषण आपदा से लोग अभी उभर ही पा रहे थे कि फिर से प्रकृति अपना कहर बरपा रही है।
वृस्पतिवार की रात्रि को चाका गांव में बादल फटने के कारण भारी ताबाही मच गई। रात करीब साढ़े ग्यारह बजे यकायक आई मूसलाधार बारिश ने ऐसा रौद्र रूप दिखाया कि देखते ही देखते एक के बाद एक ग्रामीणों के आशियाने तास के पत्तों की तरह ढहने लगे। गाँव के ऊपरी भू-भाग से हुए कटाव और मलबे ने गाँव की वर्षों पुरानी अवसंरचना को पूरी तरह नष्ट-भ्रष्ट कर दिया।
चाका गांव के ऊपरी हिस्से से आए सैलाब ने क्या मकाने, क्या गौशालाये। खेती-बाड़ी, पेयजल और विद्युत लाइने सब कुछ तबाह कर दिया। गांव के दोनो ओर से उफान पर आए गदरे और घरों में घुसे मलबे से बाहर निकलने के लिए ग्रामीण जिंदगी बचाने की जदोजहद कर रहे थे। स्याह अंधेरी काली रात और प्रकृति के इस भयावाह मंजर से किसी तरह ग्रामीण रात के दो-तीन बजे तक सुरक्षित स्थानों पर पहुंच पाए।
अपनी जिंदगी भर की पूँजी और अपने हाथों से सजाये-सँवारे आशियाने को अपने ही आँखों के सामने मलबे में बिखरा देख ग्रामीण अपने आँसु नहीं रोक पा रहे हैं। कुंठित और रूआंसे स्वर में ग्रामीण कहते हैं कि उनके बच्चों के प्रमाण पत्र, बैंक कागजात, नगदी, ज्वैलरी के साथ ही लत्ते-कपड़े और खाद्यान सामग्री कुछ भी उनकेे पास नहीं बचा है ऐसे में जहां ग्रामीणों का वर्तमान चैपट हो गया है वहीं अब उन्हें भविष्य की चिंता भी सताने लगी।
चाका गांव में बादल फटने की सूचना जिला प्रशासन से लेकर आपदा प्रबन्धन विभाग को रात को दी गई थी लेकिन खराब सड़कों के कारण राहत बचाव की टीम मौके पर नहीं पहुंच पाई। अगस्त्यमुनि पुलिस जरूर घटना स्थल पर पहुंची लेकिन अंधेरा होने के कारण राहत बचाव के कार्य नहीं हो सकें। उसके बाद आज राजस्व उपनिरीक्षक ने गांव का मौका मुआयना किया। आपदा में अपना सबकुछ गंवा चुके पीड़ितों का गांव के पंचायत भवन पर राहत शिवर लगाया गया है।
चाका गाँव में चार परिवारों के आशियाने पूरी तरह से इस तबाही की भेंट चढ़े हैं जबकि 20 परिवारों को आंशिक रूप से नुकसान हुआ है। साथ ही 4 गौशालायें और उनके अंदर करीब एक दर्जन पशु भी मलबे में जिंदा दफन हो गए। दो दुकानों के साथ ही ग्रामीणों सिंचित भूमि, पेयजल लाईन, विद्युत लाइन, गांव के रास्ते, पौराणिक जल स्रोत सहित सब कुछ मलबे में दब गया। पीड़ित परिवारों हालांकि प्राथमिक राहत देने के लिए पंचायत भवन में शिविर लगाया गया है लेकिन इन परिवारों के सामने यक्ष प्रश्न यहीं है कि आखिर ये कब तक राहत शिविरों में दिन काटने के लिए मजबूर रहते हैं?