पहले ही पलायन की मार झेल रहा उत्तराखंड के गांवो में जंगली जानवर लोगों की परेशानी का सबब बने हुए हैं। लोगों की जीविका खतरे में.
टिहरी जिले की केमर घाटी क्षेत्र की बात करे तो यहां पर जंगली जानवरों द्वारा फसल बार—बार नष्ट किये जाने से स्थानिय लोग काफी परेशानी का सामना कर रहे हैं। आजतक वन विभाग और जन प्रतिनिधि केवल जल्द इसका हल निकालने का अपना दावा करते ही नजर आये हैं। लेकिन लोगों को इन जंगली जानवरों से अभी तक निजात नहीं मिल पायी हैं। ना ही ऐसे जन प्रतिनिधियों से लोगों को कोई खाश उम्मीद है.
केमर घाटी के बेलेश्वर और श्रीकोट गाँव की लगभग ३० से ४० % खेती आज बर्बाद हो रही है यहाँ के स्थानीय निवासी इन दिनो जंगली जानवर सुवर के आंतक का कोप भजन बनते जा रहे हैं। क्या घर क्या खेत हर तरफ जंगली जानवरों का ही खौफ हैं। एक तरफ जंहा बन्दर घरों के अंदर से सामान उठाकर ले जा रहा है तो वही दूसरी तरफ जंगली सुवर रात को धान की तैयार फसल को बर्बाद कर रहा है। खेतो में और घर में अक्सर जंगली जानवरो द्वारा नुकसान का डर बना ही रहता हैं । कुछ समय पहले सिलियारा गाँव में बन्दर ने २ महिलावों पर हमला कर उन्हें काफी नुक्सान पहुंचाये उसकी भी सुध लेने कोई नहीं आया . इससे पहले जंगली सुवर पिछले सीजन की गेंहू की तैयार फसल को बर्बाद कर गया और अब इस सीजन की धान की फसल को अपना अखाडा समझ कर उसे बर्बाद कर रहा है.
स्थानीय निवासी मनोज पोखरियाल और कई अन्य महिलावों ने आरोप लगाते हुवे कहा की ” साब किले होण हमारी सुनवें जब चमचों को काम होण लगियूं धका पेल मा, घनसाली विधानसभा का जन प्रतिनिधि आपडा चमचों दगडी कभी ये धार मा कभी वे धार माँ पिकनिक कना छा, कभी कये स्कूल का बाना कभी किये मेला का बना य्वों की मौज आयीं छा , हमारू न कोई जान न पछाण हमारी कैन सुण साब ।”
स्थानीय लोगों का आरोप है की वन विभाग को भी बार बार कहने पर कार्यवाही की बात तो करते है लेकिन आज तक असल में हुवा कुछ नहीं कुछ नहीं। श्रीमती तिलोत्तमा देवी ने बताया कि इन जंगली जानवरो ने खेतो में ही नहीं घरों में भी आतंक मचाया हुआ है और लगातार नुकसान कर रहे हैं। उर्मिला देवी तो कहती है कि अब तो खेती करने का मन भी नहीें होता हैं। वे खेत में मेहनत करते है और जंगली जानवर उनकी मेहनत पर पानी फेर देते हैं। मनोज पोखरियाल और सोबन सिंह बरियाल के अनुसार जंगली जानवर उनके दुल्हन की तरह मेहनत करके सजायी गयी खेती पिछले 2-३ साल से बर्बाद कर रहा है परन्तु ना शासन— प्रशास ना ही जनप्रतिनिधि आजतक उनकी खेती बाड़ी की सुध लेने नहीं आया .
लोगों का कहना है की न तो उनकी क्षतिपूर्ति की जा रही है ना ही जंगली जानवरों के आंतक पर नकेल कसी जा रही है। जब धन की रुपाई जून -जुलाई के महीने में हवी थी तभी क्षेत्रिय विधायक शक्ति लाल को भी इस बारे में निवेदन किया गया था परन्तु तबसे लेकर आजतक वे इस क्षेत्र में कास्तकारों का हाल जानने तक नहीं आये.
तत्कालीन बालगंगा वनक्षेत्राधिकारी पूजा पयाल को भी उक्त नुक्सान की जानकारी दी गयी थी परन्तु उनके विनभाग ने भी इस और कोई ध्यान नहीं दिया. उन्होंने उस वक़्त आश्वाशन दिया था की वे सुवर के आने जाने वाले रास्ते का पता लगा कर उसपर रोकथाम की कोशिश करेगा। इनके साधान के लिए हर तरफ से केवल राजनीतिक बयान बाजी जरूर हवी है परन्तु हकीकत में किसी के द्वारा इस पर कोई कार्रवाही नहीं हुई ।
शासन और प्रशासन के दावों के बीच सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर सालों से चली आ रहीे इस समस्या का समाधान होगा कैसे ? स्थनीय लोगों का कहना की उनसे बड़ी गलती हो गयी है .
क्या लोगों की बर्बाद होती फसल का शाशन प्रशाशन संज्ञान लेगा और कास्तकारों की मदद करेगा.