कांगड़ा गाँव ( घनसाली विधानसभा)  :-

आज़ादी के ७० वर्ष से भी ज्यादा बीत जाने के बावजूद भी नहीं सुधरती दिख रही इस गाँव की स्तिथि .२६ साल का इन्तजार भी पूरा नहीं कर पाया इनकी सबसे बड़ी उम्मीद . सरकार के सारे दावे इस गाँव में आकर हुए फ़ैल, कोई भी यहाँ नहीं आना चाहता है.

जनपद टिहरी के विकाशखंड भिलंगना में बसा है कांगड़ा गाँव. यह गाँव सड़क मार्ग से लगभग ८-१० किलोमीटर पैदल एक दम खड़ी पहाड़ी की चढ़ाई पर स्थित है , शायद यही कारण है की आज तक भी यहाँ की स्थिती सुधरती नजर नहीं आ रही है. चुने गए जनप्रतिनिधि भी लोगों के मापदंडो पर खरे नहीं उतर पाए हैं. लोगों ने लगाये आरोप .

इस गाँव की आबादी लगभग १२०० से ऊपर बताई जाती है जिसमे से ९०० से ज्यादा वोटरों की संख्या है.

सबसे बड़ी बात यह है की बीजेपी बाहुबल्या  गाँव होने के बावजूद भी आज तक यह गाँव हर तरह की सुविधावों से महरूम है.

लोगों का कहना है की उन्होंने हर बार सिर्फ और सिर्फ बीजेपी के प्रत्यासी को वोट दिया है बावजूद इसके उनकी स्थिती फिर भी नही सुधर रही है अब तो उनका सबसे से भरोसा उठ गया है.

हर साल लोग यहाँ से पलायन कर रहे हैं जिसका मुख्या कारण है यहाँ पर बुनियादी सुविधावों का न होना है.

हमारी टीम और शायद मीडिया की यह पहली पहल है जब कोई पैदल ८ किलोमीटर का पैदल रास्ता तय करके कांगड़ा गाँव गया और वहां के लोगों से वहां की समस्या के बारे में रूबरू हुआ.

८ किलोमीटर चढ़ाई भरा जोखिम भरे रास्ते  से रोजाना  का ८ से १० किलोमीटर का सफ़र तय करते हैं कांगड़ा गाँव के रहने वालों की आँखे सड़क के इन्तजार में पथरा सी गयी है  उनका अब सबसे से बहरोसा उठ गया है.

कांगड़ा गाँव के सोबन सिंह  ने कहा की १९९१ से कांगड़ा सड़क की परिक्रिया शुरू थी इस असदक के लिए पूर्व में भी कई बार वे लोग चमियाला सड़क पर धरना प्रदर्शन कर चुके है बावजूद इसके आज २६ साल बीत गए हैं अपर अभी तक सड़क का कार्य आधा भी पूरा नहीं हुआ है,जो हो भी रहा है उसका कार्यकाल भी बहुत पहले पूरा हो चूका है बावजूद इसके शाशन प्रशासन इन लोगों पर कोई कार्यवाही नहीं कर रहा जिनके वजह से सड़क के कार्यों में देरी हो रही है. और बाकी आधे का पता ही नहीं है की उसका कार्य कब प्रारंभ होगा. उनका कहना है की इतने समय में तो पूरे भारत की सड़क की समस्या का निदान हो जाना चाहिए .

इस गाँव के बच्चे यहाँ से ८-१० किलोमीटर दूर लाटा गाँव में स्थित राजकीय इंटर कॉलेज में पढने आते हैं वे हर रोज १६ से १८ किलोमीटर पैदल चलते हैं , उनका भी कहना है की वे इतनी दूर चलकर पूरी तरह से थक जाते हैं ऐसे में उनके सही ढंग से पढना बहुत मुस्किल है.

सरकार से पूरी तरह से भरोसा उठ गया है इस गाँव का , लोगों इतने गुस्से में हैं की उन्होंने जमकर लोक निर्मान विभाग,  स्वास्थ्य विभाग , विधयक और सांसद के खिलाफ  मुर्दाबाद तक के नारे लगाये.
अगर बीजेपी बाहुल क्षेत्र वाले गाँव की ये स्थिति है तो अन्य की क्या स्थिति होगी आप खुद इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं.

यही स्तिथि यहाँ पर स्वास्थ्य विभाग की भी है  लोगों का कहना है की आज तक इस गाँव में स्वस्थ्य विभाग का कोई भी बड़ा अधिकारी नही आया है इस गाँव में स्वस्थ्य के नाम पर कोई भी सुविधा नहीं है . बीमार होने पर लोगों को कंधे और कुर्शियों पर लादकर नीचे अस्पताल में लाना पड़ता है.

सबसे बड़ी स्थिति तो तब ख़राब होती है जब किसी महिला की प्रसूति की बात आती है और उसको रात में ही परिजनों द्वारा कंधो पर लादकर नीचे बेलेश्वर और पिलखी स्वास्थ्य केंद्र में पहुँचाया जाता है जबकि रास्ता पैदल और जंगली जानवरों से भरा हुआ है और हमेशा ही जंगली जानवरों का खतरा यहाँ पर रहता है.

क्या ये मानव अधिकारों का हनन नहीं तो और क्या है और इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा .क्या जन्पर्तिनिधि केवल केवल वोट बैंक के लिए स्वांग करते रहेंगे या सच में इन बीहड़ इलाकों में बसे लोगों का भी भला होगा.

गाँव के चतर सिंह का कहना है की गाँव में स्वस्थ्य सुविधा के नाम पर तैनात एक मात्र एएनएम सरिता बही अपनी ड्यूटी दहंग से नहीं करती है और वह भी लोगों को टीकाकारन करने के लिए आधे रास्त में बुलाती है ,

कोई भी अधिकारी या कर्मचारी यहाँ पर अपनी सेवा देना नहीं आता है न ही कोई इस और ध्यान दे रहा है.

जब प्रदेश में सरकार भी बीजेपी की हो और विकास की भी खूब बधिय चर्चा हो रही हो और धरातल में सच कुछ और ही हो  और बीजेपी बाहुबली क्षेत्र की ये स्थित हो तो फिर कहना ही क्या.

विकास किस और और कितना सही हो रहा है इस बात पर सवाल उठाना लाज़मी हो जाता है और अब तो शायद विकास भी अपने आप से शर्माने लग गया होगा.

गाँव की महिलावों का कहना है की वे लोग आज भी पशु की तरह जिंदगी जीने को मजबूर हैं कोई भी उनका संज्ञान लेने नहीं आता है. लोक निर्माण विभाग घनसाली के इस सड़क की जिम्मेदारी संभाल रहे सहायक अभियंता कपिल कुमार का कहना ही बाकी बचे हुवे ५ किलोमीटर सड़क का बजट एस्टीमेट लगभग ७.०९ करोड़ रुँपये उन्होंने शाशन को अगस्त माह में ही भेज दिया था पर अभी तक उसके बारे में कोई आदेश नहीं आये हैं.

कैसे रुकेगा पलायन जब खुद यहाँ से चुने जाने वाले प्रतिनिधि ही यहाँ पर बसे लोगों की समस्यायों की सुध लेने नहीं आते हैं.

लोगों के अन्दर अपनी बुनियादी सुविधावों के नाम पर इतना गुसा है की उन्होंने गुस्से में आकर जमकर अपना गुस्सा लोक निर्माण विभाग, स्वस्थ्य विभाग , विधायक तथा सांसद पर निकाला और उनके खिलाफ मुर्दाबाद के नारे भी लगाये.

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